आजकल के समय में अपनापन वाले रिश्तों में एक अजीब सी खालीपन घुलती जा रही है। ऐसा लगता है जैसे यह सबके साथ हो रहा हो। पहले जहाँ बिना किसी कारण के दोस्तों या रिश्तेदारों के घर जाकर मस्ती करना और बातें करना सामान्य था, आज वह लगभग खत्म हो चुका है। अब फोन पर भी ज्यादातर बात तब होती है जब कोई काम हो या कोई खास मौका हो।
दिल की बातें किससे शेयर करें, जो ना तो हमें judge करे, ना अपनी convenience के हिसाब से सोचे, ना अपनी thinking हम पर थोपे, बस pure अपनापन से हमें support करे? ऐसे लोग अब बहुत कम हो गए हैं।
आजकल दिखावे वाली life बढ़ती जा रही है, और दिल से मिलने वाला सच्चा प्यार कम होता जा रहा है। करीब 30 साल पहले, जब कोई बड़ा function होता था, तो खाना बनाने से लेकर उसे serve करने और मेहमानों की देखभाल करने तक हर जगह 10-20-50 लोग अपनी इच्छा से मदद के लिए तैयार रहते थे। आज यह दृश्य बहुत ही दुर्लभ हो गया है। रहने के लिए अब लोग पड़ोसी के यहाँ जाने के बजाय होटल या टेंट arrange करते हैं। खाना तो पहले ही हलवाइयों को दे दिया जाता था, अब तो serve करने के लिए भी caterers रखने पड़ते हैं।
रिश्तों में आई मिठास की कमी का एक बड़ा कारण आज का materialistic सोच है। हर किसी को बस दिखाना है कि वह कितने 'successful' हैं। आज के समय में एक simple lifestyle maintain करना भी मुश्किल होता जा रहा है। Government या secured job मिलना बहुत कठिन हो गया है। Private jobs में लोगों के पास सांस लेने तक का समय नहीं होता। हर रोज एक invisible डर सताता है — कहीं job न चली जाए। इसके अलावा महंगाई का extra pressure भी है।
हमारे समाज में इतना ज्यादा social pressure है कि बच्चों को government school में भेजना एक तरह से 'status' के खिलाफ माना जाता है। दुख की बात यह है कि कई government schools भी expectations पर खरे नहीं उतरते।
Education और Health का खर्च दिन-ब-दिन आसमान छू रहा है। Health तो अब भगवान भरोसे ही है। जहाँ देखो वहाँ अस्पतालों में भीड़ ही भीड़ है। और अगर पैसा न हो तो इलाज कराना एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है। पैसा होने पर भी अच्छे और timely इलाज की guarantee नहीं है। इंसान किसी तरह सस्ता खाना खा लेगा, छोटा घर ले लेगा, लेकिन health और education में compromise करना बहुत मुश्किल होता है — और आज सबसे ज्यादा exploitation इन्हीं दो fields में हो रहा है।
एक संतुलन ज़रूरी है — दोनों तरफ से। मेरा मानना है कि government schools और hospitals पूरी तरह free नहीं होने चाहिए। जिनके पास BPL (Below Poverty Line) कार्ड है, उन्हें special छूट मिले, बाकी लोगों से एक reasonable fee ली जाए, जो private institutions से competition में हो। लोग खुद decide करें कि उन्हें कहाँ पढ़ाना या इलाज कराना है। जब government facilities अच्छी होंगी, तो लोग private institutions को लाखों क्यों देंगे? अपने आप government services का फायदा उठाएँगे।
Government services में भी थोड़ी nominal fees होनी चाहिए — बस कम। Schools और hospitals 'no frills' model पर हो सकते हैं, जैसे airline industry में अलग-अलग carriers होते हैं — economy और business class type. Govt schools और hospitals में basic सुविधाएँ हों — जैसे AC न हो, luxury school buses न हों, बहुत सारे security guards न हों, swimming pool या horse riding जैसी luxury चीजें न हों — ये सब न भी हो तो चलेगा। Main focus रहे अच्छी पढ़ाई और अच्छा इलाज।
BPL selection बिल्कुल fair और actual economic situation के base पर होना चाहिए। यहाँ Information Technology की बहुत important role है। हर citizen का Aadhaar से linking हो और cash transactions minimum हों। और developed countries की तरह एक solid Social Security System भी हो।
मैं सालों से लाखों रुपये income tax, property tax, vehicle tax, service tax वगैरह pay करता आ रहा हूँ, फिर भी अगर मैं अपनी नौकरी खो दूँ, तो government से एक रुपया भी मदद नहीं मिलती। यही डर Indian corporate world में exploitation को बढ़ाता है। लोग insult और harassment सहते हुए भी job में टिके रहते हैं — options ही कहाँ हैं?
और सच कहूँ तो जो दूसरों को harassment करते हैं, वो खुद भी किसी ना किसी डर या pressure में जी रहे होते हैं। तो फिर solution क्या है? क्या सबको socialist बना दिया जाए? सबकी property बाँट दी जाए ताकि कोई भूखा न रहे और कोई करोड़ों खर्च न करे? नहीं, यह practical नहीं है। सिर्फ एक balanced capitalist society sustainable है। जो जितनी मेहनत करे, जितना intelligent हो, उसे उतना ही reward मिले। उनके सपने पूरे हों, उनकी luxury बढ़े — यही तो wealth circulation है, जिससे job और business भी चलते हैं। लेकिन साथ में society के weaker sections को भी government और citizens का support मिलना चाहिए। अगर वे मेहनत करें तो उनका भी time आएगा। luck का भी इस journey में role होता है।
बस यूँ ही कुछ बातें दिल से निकलीं, आपसे शेयर कर दीं। आप सब हमेशा healthy, happy और prosperous रहें। जितना हो सके, लोगों को pure love दीजिए, और अपने health का खास ध्यान रखिए — especially preventive care पर।
— आशीष कुमार झा, Panorama eHomes, पूर्णिया, बिहार, भारत
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